1 सितंबर 2025 को अमेरिका द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव साफ तौर पर दिखने लगा है। अमेरिका ने यह कदम इस आधार पर उठाया है कि भारत, रूस के साथ तेल व्यापार जारी रखे हुए है, जबकि अमेरिका चाहता है कि रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए भारत इस व्यापार को रोके। लेकिन भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक हितों को प्राथमिकता दी है और अमेरिका के दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया है।
इस टैरिफ के बाद दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संवाद में ठंडक आ गई है। लेकिन अब, ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी SCO समिट में शामिल होने चीन पहुंचे हैं और वहां उनकी मुलाकात रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई है, अमेरिका की तरफ से सॉफ्ट डिप्लोमेसी का एक नया उदाहरण सामने आया है।
🇺🇸 अमेरिका का बदला रुख: बयान में साझेदारी की बात
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो का एक बयान भारत में अमेरिकी दूतावास द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया गया है। इस बयान में उन्होंने कहा:
“संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी लगातार नई ऊंचाइयों को छू रही है। यह 21वीं सदी का एक निर्णायक रिश्ता है। हम इनोवेशन, द्यमिता, रक्षा और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा कर रहे हैं, जो दोनों देशों के लोगों की स्थायी मित्रता को और मजबूत बना रहे हैं।”
बयान के अंत में #USIndiaFWDforOurPeople जैसे हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए दोनों देशों की जनता को इस साझेदारी का हिस्सा बनने का आह्वान किया गया है।
मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग की मुलाकात
इ बीच, प्रधानमंत्री मोदी की SCO समिट में उपस्थिति ने वैश्विक मंच पर एक अलग तस्वीर पेश की है। समिट के दौरान मोदी, पुतिन और जिनपिंग तीनों एक साथ बातचीत और हंसी-मजाक करते हुए देखे गए। खास बात यह रही कि पीएम मोदी और पुतिन एक ही कार में बैठकर द्विपक्षीय बैठक स्थल तक पहुंचे, जिससे दोनों नेताओं की मजबूत निजी केमिस्ट्री जाहिर होती है।
अमेरिका के लिए यह दृश्य निश्चित रूप से राजनीतिक असहजता का कारण है, खासकर तब जब उसने भारत पर कड़ा आर्थिक कदम उठाया है।
अमेरिका का दोहरा रवैया?
जहां एक ओर अमेरिका ने भारत पर आर्थिक दंड (50% टैरिफ) लगाया है, वहीं दूसरी ओर सार्वजनिक मंचों पर साझेदारी और मित्रता की बात की जा रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका भारत को पूरी तरह से खोना नहीं चाहता, और वह अपने रिश्ते को बचाने के लिए राजनयिक संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है।
निष्कर्ष: भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता बरकरार
भारत ने एक बार फिर साबित किया है कि वह आत्मनिर्भर विदेश नीति का पालन करता है और किसी भी बाहरी दबाव में नहीं आता। SCO समिट में भारत की सक्रिय भागीदारी, रूस और चीन से संवाद, और अमेरिका को स्पष्ट संदेश, यह दर्शाता है कि भारत अब केवल सहयोगी नहीं, बल्कि एक वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत कर रहा है।