मुंबई, 18 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) आज विराट कोहली का नाम सिर्फ़ एक क्रिकेटर का नहीं, बल्कि एक जुनून, समर्पण और सफलता की कहानी का पर्याय है। लेकिन उनके इस शिखर तक पहुँचने के पीछे एक ऐसी कहानी है, जो दिखाती है कि कैसे परिवार का अटूट समर्थन किसी भी व्यक्ति को उसके सपने पूरा करने में मदद कर सकता है। जब विराट ने अपनी पढ़ाई छोड़कर क्रिकेट को अपना एकमात्र लक्ष्य बनाने का फैसला किया, तो उनके परिवार ने उन पर दबाव बनाने के बजाय उनके फैसले का सम्मान किया और यही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
पिता का विश्वास और भाई का सहारा
विराट कोहली ने एक पुराने चैट शो में खुद यह खुलासा किया था कि वह अपने परिवार में तीसरे बच्चे थे और उनसे कभी कोई ख़ास उम्मीद नहीं रखी गई थी। उनके बड़े भाई और बहन उनसे काफी बड़े थे। उनके पिता प्रेम कोहली हमेशा चाहते थे कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करें, लेकिन क्रिकेट के प्रति उनका जुनून इतना गहरा था कि वह स्कूल और कॉलेज पूरा नहीं कर पाए।
विराट ने बताया कि उनके भाई उन्हें मैचों के लिए ले जाते थे और उनके पिता भी उनका बहुत समर्थन करते थे। उनका परिवार क्रिकेट को बहुत पसंद करता था और उन्होंने कभी भी विराट को अपने सपनों को पूरा करने से नहीं रोका। यह उनके परिवार की सोच का ही नतीजा था कि विराट बिना किसी दबाव के अपने खेल पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित कर पाए।
"सपोर्ट का मतलब एकाग्रता"
इस मामले पर मनोचिकित्सक डेलना राजेश का कहना है कि परिवार का समर्थन किसी भी व्यक्ति के लिए मुक्तिदायक हो सकता है। उनके अनुसार, "समर्थन का मतलब है कि एक व्यक्ति अपने विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। यह दिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति बिना किसी परेशानी के पूरी तरह से अपने काम पर ध्यान लगा सकता है।" उनका मानना है कि अब समय आ गया है कि हम "नाम कमाने" की बजाय "ध्यान केंद्रित करने" को महत्व दें।
विराट की कहानी हमें यह सिखाती है कि जब कोई व्यक्ति अपने जुनून का पीछा करता है, तो उसे समाज की मान्यताओं के बजाय अपने आंतरिक मूल्यों पर भरोसा करना चाहिए। उनके परिवार ने यह दिखाया कि बिना किसी दबाव के अपने बच्चे का साथ देना कितना महत्वपूर्ण होता है। आज, उनकी सफलता न केवल उनकी कड़ी मेहनत का परिणाम है, बल्कि उनके परिवार के उस अटूट विश्वास का भी है, जिसने उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर बनने में मदद की।