जब पंजाब इस दशक की सबसे भयावह बाढ़ से जूझ रहा है, तब देश ने एक सितारे को नहीं, बल्कि मिट्टी से जुड़ा एक सच्चा बेटा देखा — दिलजीत दोसांझ। अपने शब्दों से नहीं, अपने कर्मों से उन्होंने दिखा दिया कि ज़मीन से जुड़ा कलाकार क्या होता है।
गुरदासपुर और अमृतसर ज़िलों के दस सबसे ज़्यादा प्रभावित गांवों को दिलजीत ने गोद लिया है। ये सिर्फ़ एक राहत पैकेज नहीं, बल्कि एक व्यापक संकल्प है — पुनर्निर्माण, पुनर्वास और इंसानियत के पुनर्जीवन का। उनकी टीम ने इंस्टाग्राम पर इस पहल की जानकारी देते हुए लिखा: "साथ मिलकर हम फिर से बना सकते हैं।"
ये सिर्फ़ आशा की बात नहीं — ये एक स्पष्ट संदेश है कि अगर नीयत हो, तो बदलाव शुरू हो सकता है, एक इंसान से भी। इन इलाकों की स्थिति बेहद दर्दनाक है — डूबे हुए गांव, उजड़े हुए घर, और पल भर में बर्बाद हो चुकी ज़िंदगियाँ। ऐसे में दिलजीत की यह पहल न केवल राहत का हाथ है, बल्कि एक उम्मीद की किरण है जो लंबी दूरी तक साथ चलेगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक़, आने वाले महीनों में ये मुहिम शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और मकानों के निर्माण तक का जिम्मा उठाएगी।
दिलजीत इससे पहले भी कई मौकों पर अपने स्टारडम को जनसेवा के लिए इस्तेमाल कर चुके हैं — चाहे किसानों के आंदोलन की बात हो या कोरोना काल में ज़रूरतमंदों की मदद करना। लेकिन पूरे के पूरे गांवों को अपनाना, उनकी प्रतिबद्धता को एक नई ऊंचाई देता है। अब वह सिर्फ़ एक कलाकार नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक जननायक बन चुके हैं।
जहाँ एक ओर वह अपने करियर की ऊँचाइयों पर हैं — जल्द ही पंजाब 95 और बॉर्डर 2 जैसी फिल्मों में नज़र आएंगे — वहीं आज वह एक ऐसे किरदार में दिख रहे हैं, जो न किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा है, न किसी फिल्म का — बल्कि असल ज़िंदगी का एक हीरो।